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"अपने गांव में जब मैं चलती थी तो लोग पीछे से ताली बजाते थे, तरह-तरह के कमेंट पास करते थे. कहते थे, तुम ऐसे चलते हो, ऐसे करते हो, तुम्हारे अंदर ये परेशानी है, वो परेशानी है. हमारी कम्युनिटी को लोग इसी निगाह से देखते हैं कि ये दूसरों की खुशी में ताली बजाने वाले लोग हैं...खैर, इन्हीं लोगों के कमेंट की वजह से 2014 में मुझे अपना गांव, अपना परिवार छोड़ना पड़ा..."
"..मगर मैंने तय कर लिया कि एक दिन मैं ऐसी सफलता हासिल करूंगी कि इन्हें मेरे लिए ताली बजानी होगी. आज वो दिन आ गया है." इंडिया टुडे से बातचीत करते हुए जब देश की पहली ट्रांसवुमन दारोगा मानवी मधु कश्यप यह सब कह रही थीं तो उनके चेहरे पर आत्मविश्वास और खुशी तो थी ही, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति होने के कारण जीवन भर सही गई पीड़ा भी बार-बार उभर कर सामने आ रही थी.